हरियाणा का वो कांड, जिससे चली गई थी चौटाला सरकार
मार्च 2000 में प्रदेश में इनैलो की सरकार बनी और ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने। दिसम्बर 2001 में किसानों ने बिजली बिलों को लेकर आंदोलन छेड़ दिया। मई 2002 में भारतीय किसान यूनियन के आह्वान पर जींद के कंडेला गांव में किसानों ने आंदोलन शुरू किया। किसानों की ओर से सडक़ों पर जाम लगाया जाने लगा।
19 मई को हुई पुलिस फायङ्क्षरग में नगुरा गांव में 1 किसान की मौत होने के बाद किसानों के तेवर और अधिक आक्रामक हो गए। इसके बाद किसानों ने उपपुलिस अधीक्षक, सिपाही को बंधक बना लिया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला विदेश दौरे पर थे। चौटाला ने विदेश से ही बिजली बिलों के बकाया सरचार्ज को माफ करने के अलावा शेष राशि का भी 75 प्रतिशत माफ कर दिया।
आंदोलन कर रहे किसानों ने बंधकों को जरूर छोड़ दिया, पर अपनी मांगों को लेकर अड़े रहे। पुलिस जब जाम खुलवाले गई तो पत्थरबाजी हुई और इसके बाद पुलिस फायङ्क्षरग में एक व्यक्ति की मौत हो गई। पुलिस कंडेला में जाम खुलवाने में कामयाब रही, पर नगुरा में जाम चलता रहा। पुलिस ने नगुरा में फायङ्क्षरग की, जिसमें 2 आंदोलनकारियों की मौत हो गई।
इसके बाद गांव गुलकनी में भी पुलिस फायङ्क्षरग में 6 लोगों की मौत हो गई। इस तरह से कुल 9 लोगों की मौत हो गई और इस पूरे प्रकरण को आज भी कंडेला कांड के रूप में याद किया जाता है। कंडेला कांड के बाद ही कांग्रेस नेता भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा ने राज्य में इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया और बाद में 2005 में वे मुख्यमंत्री बने।